शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015

कविता - नारी

नारी 
कभी अबला
कभी सबला
कभी ममता  
कभी करुणा
जाने  कितने रूप दिखाती। 
कभी जननी
कभी बहिनी
कभी जीवनसंगिनी
और कभी सहयोगी
बनकर् रिश्तों को वह खूब निभाती। 
कभी गुरु
बनकर जीवन का पाठ सिखाती
कभी दुःख में
कभी सुख में
हर हाल में जीने के अंदाज सिखाती
नारी धरा है
वसुंधरा है
वसुदैव कुटुंब की आधारशिला है
नारी को शत शत नमन।
अनंत माहेश्वरी खंडवा

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