शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015

कविता - क्यों बिगड़ी है ? फिज़ा मेरे शहर की

क्यों बिगड़ी है ? फिज़ा मेरे शहर की
जानना चाहता हूँ मै
तनावग्रस्त रहकर थक चुका हूँ
अमन चैन की जिंदगी चाहता हूँ
उड़ते परिंदों की मानिन्द
पर फैलाकर उड़ना चाहता हूँ
दम घुटने लगा है मेरा इस शहर में
अब खुलकर सांस लेना चाहता हूँ
क्यों बिगड़ी है ? फिज़ा मेरे शहर की
जानना चाहता हूं मै।
अनंत माहेश्वरी खंडवा

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