शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015

कविता - क्यों बिगड़ी है ? फिज़ा मेरे शहर की

क्यों बिगड़ी है ? फिज़ा मेरे शहर की
जानना चाहता हूँ मै
तनावग्रस्त रहकर थक चुका हूँ
अमन चैन की जिंदगी चाहता हूँ
उड़ते परिंदों की मानिन्द
पर फैलाकर उड़ना चाहता हूँ
दम घुटने लगा है मेरा इस शहर में
अब खुलकर सांस लेना चाहता हूँ
क्यों बिगड़ी है ? फिज़ा मेरे शहर की
जानना चाहता हूं मै।
अनंत माहेश्वरी खंडवा

कविता - नारी

नारी 
कभी अबला
कभी सबला
कभी ममता  
कभी करुणा
जाने  कितने रूप दिखाती। 
कभी जननी
कभी बहिनी
कभी जीवनसंगिनी
और कभी सहयोगी
बनकर् रिश्तों को वह खूब निभाती। 
कभी गुरु
बनकर जीवन का पाठ सिखाती
कभी दुःख में
कभी सुख में
हर हाल में जीने के अंदाज सिखाती
नारी धरा है
वसुंधरा है
वसुदैव कुटुंब की आधारशिला है
नारी को शत शत नमन।
अनंत माहेश्वरी खंडवा

कर्ज से हारती किसानो की जिंदगी

मध्यप्रदेश के निमाड़ अंचल में बेमौसम हुई बारिश और ओलावृष्टि के चलते फसल खराब होने के कारण,  कर्ज के बोझ तले किसान मौत को गले लगा रहे है। खरगोन जिले में दो किसान ख़ुदकुशी कर चुके है , तो खंडवा जिले के दो किसानो ने  कीटनाशक पीकर मौत को गले लगाना चाहा , जिसमे से एक किसान की जान बच गई। 

 
31 मार्च 2015  खंडवा जिले के ग्राम सिंगोट निवासी  कृषक रामशंकर पिता दयाराम तिरोले उम्र 42 वर्ष में खेत में कीटनाशक पीकर जान दे दी ।

ग्राम सिंगोट से दो लिकोमीटर दूर रामशंकर की सात एकड़ जमीन है , जिसमे रामशंकर ने मूंगफल्ली , गेंहू और  तरबूज की फसल लगाई , जो मौसमी मार से खराब हो गई । एक तो उत्पादन कम हुआ, उसपर तीन लाख रुपयों का कर्ज और बेटी के ब्याह की चिंता।  इसी कारण वह मानसिक तनाव में था , मृतक के भाई जगदीश ने बताया की मानसिक परेशानी के चलते रामशंकर , पिछले  चार-पांच दिनों से शराब पी रहा था।  बुधवार सुबह वह खेत में गया  कीटनाशक पीने के बाद वहां पड़ी  खटिया पर गिर गया , जिसे आस-पास के खेत के काम करने वालो ने देखा और पुलिस को सुचना दी।  पुलिस को घटनास्थल पर किसान के पास से मोनोफास्ट नामक कीटनाशक मिला। 
 
रामशंकर पर कुल तीन लाख रुपयों का कर्ज बकाया है।  एक लाख पचास हजार रूपये "बैंक आफ इंडिया के क्राफ्ट लोन के अलावा मोटर साइकिल पर पचास हजार रूपये का कर्ज बकाया  है । साहूकारी कर्ज बकाया है सो अलग।  

इस मामले में जिला कलेक्टर महेश अग्रवाल का तर्क है की किसान ने  तीन हिस्सों में फसल की बुआई की थी  । चूँकि उस क्षेत्र में ओलावृष्टि नहीं हुई है , अतः यह कहना गलत है की , मौसम की मार से उसकी फसल खराब हुई है।   उसने जो गेंहू लगाया था , उसका तीस क्विंटल गेंहू उसके घर में रखा हुआ है। पिछले सप्ताह तीस  हजार रूपये में तरबूज की फसल बेच चुका है। किसान पर बैंक का देड लाख रुपया बकाया है , और बाइक का पचास हजार रुपया , लेकिन बैंक ने वसूली के लिए कोई नोटिस नहीं भेजा ,  ऐसे में किसान के परिजनों द्वारा लगाया यह आरोप गलत है की उसकी फसल खराब होने पर उसने जहर पीया। 


27 March, 2015 जिला  खरगोन- ग्राम बरुड़ निवासी कृषक मिथुन पिता गोपाल कोली ने शुक्रवार सुबह कीटनाशक पी लिया। मृतक के भाई दीपक कोली ने बताया बेमौसम बारिश और ओलावृष्टी से पांच एकड़ खेत में फसले चौपट हो गई थी। साथ ही मिथुन को बैंक का करीब डेढ़ लाख का कर्ज भी चुकता करना था, जिसे लेकर वो परेशान रहता था। दीपक ने बताया कि शुक्रवार सुबह मिथुन खेत में फसलों को पानी देने गया था, जिसके बाद दोपहर तक नही लौटने पर खेत में जाकर देखने पर उसे मृत अवस्था में पाया। किसान मिथुन के खेत में लगातार तीन वर्षों से ओलावृष्टी और बारिश से फसलों को नुकसान हो रहा था। जिससे खेत से कोई फायदा नही मिल रहा था। दीपक कोली ने बताया कि तीन वर्षों में फसलों की बोवनी के लिए लगातार खर्चा किया, लेकिन उपज से पर्याप्त दाम नही मिल पाया था।मृतक के भाई के अनुसार बैंक के कर्ज के अलावा किसान ने बाजार से भी कर्ज ले रखा था , जो बैंक के कर्ज सहित पांच लाख रूपये था।   

 बैंक से प्राप्त जानकारी के अनुसार मिथुन पर बैंक आफ इंडिया का कुल 1 लाख 52 हजार 346  रुपए का कर्ज था। बैंक शाखा प्रबंधक गौरीशंकर ने बताया कि इस कर्ज के लिए मिथुन को कभी कोई नोटिस जारी नही किया गया। 


20  March, 2015 जिला खंडवा - फसलों के नुकसान और कर्ज से परेशान एक और किसान ने कीटनाशक पीकर जान देने  कोशिश की। 
 बेमौसम बारिश-ओलावृष्टि से बर्बाद फसल और कर्ज चुकाने की चिंता में  खंडवा के एक किसान ने जहर पीकर आत्महत्या करने की कोशिश की , जिसे जिला चिकित्सालय में उपचार हेतु भर्ती किया । पचास वर्षीय किसान फूलसिंह ने अपनी छह एकड़ जमीन पर गेंहू की फसल लगाई थी , जो बेमौसम बारिश से खराब हो गई , मात्र चार बोरा गेहूं की उपज हुई ,  पिछली बार तुंवर की फसल लगाई थी जो बर्बाद गई , उसके बाद सोयाबीन लगाया।  यहां भी मौसम ने धोखा दे दिया,  किसान पर करीब डेढ़ लाख का कर्ज है। यह सहकारी बैंक और साहूकारों का है।  
 हरसूद तहसील के ग्राम सड़ियापानी [पुलिस आबादी] में फूलसिंह की  छह एकड़ जमीन है। इस पर खेती करके परिवार का गुजारा होता है। पहले सोयाबीन की फसल खराब हुई  फिर गेंहू की।   उसपर बारह हजार रूपये बिजली का बिल आ गया ,  समय पर कर्ज ना भरने पर पानी की मोटर भी जप्त हो गई। परिवार के तेरह सदस्यों के भरण-पोषण के लिए कुछ नहीं बचा , यहां तक की पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था करना कठिन है , अभी तो घर में खाने के लाले पड़े है , किसान के पुत्र का कहना है की उनके पिता ने फसल हेतु साहूकार से पांच प्रतिशत सैकड़े की ब्याज दर से जो देड लाख रूपये का कर्ज उठाया , उसे एक वर्ष बीत चुका है यह राशि बढ़कर दोगुनी हो चुकी है , इसके अलावा घर  गहने भी गिरवी रखे हुए है। लेखराम ने बताया कि खरीफ में सोयाबीन की फसल खराब हो गई थी। इसके बाद गेहूं की फसल लगाई। यह भी बारिश में खराब हो गई। इस कारण पिता चिंतित थे।  ऐसे में पापा ने जहर पी लिया।   
 इस मामले में जिला प्रशासन का कहना  है की किसान ने अपनी फसल में जो चना बोया था । वह साढ़े तीन क्विंटल बेच चुका है। लगभग दो एकड़ में उसने गेंहू लगाया था उसमे आंशिक खराब हुआ है। जिसमे दस बोरी गेंहू उसके घर में रखा हुआ है। सोसायटी का सिर्फ दस हजार रुपया कर्ज किसान पर बाकी है। जिस इलाके में किसान की फसल लगी है। वहा ओलावृष्टि और अनावरी नहीं हुई। ऐसे में किसान के यह आरोप गलत है की उसकी फसल खराब होने पर उसने जहर पीया। जिला प्रशासन ने आश्वासन दिया है की  मानवता के नाते किसान की यथा संभव मदद की जायेगी। .

14 March, 2015 जिला  खरगोन- ग्राम बरुड़ निवासी  बंशीलाल गुप्ता उम्र 50 वर्ष  ने कीटनाशक पीकर जान दे दी । बंशीलाल के खेत में करीब छह  एकड़ गेहूं-चने की फसल खराब हुई थी। बंशीलाल ने सुसाइड नोट में मानसिक रूप से परेशानी का उल्लेख किया था।खरगोन जिले के बरुड़ थाने के रहने वाले किसान बंशीलाल देवकरण गुप्ता ने किटनाशक दवाई पीकर आत्महत्या की । बंशीलाल की मौत और मिले सोसाइट नोट में उसने  मानसिक परेशानी का जिक्र किया ।

ग्रामीण बताते है मृतक किसान लगातार फसले चौपट होने से बंशीलाल परेशान था । उस पर बैंक और बाजार का कर्ज भी बकाया था । पूर्व में कपास की फसल खराब हो चुकी थी और इस बार हुई बेमौसम  बारिश
से उसकी गेहूँ की फसल भी खेत में आड़ी होकर खराब हो गई , जिससे वह व्यथित हो गया ओर उसने आत्महत्या का उठा लिया । वही परिजन में छोटा भाई पुलिस की कार्यवाही के चलते
कुछ कहने की स्थिति में नही है ।  पुलिस ,  मृतक को किसान ही मानने से इंकार कर पल्ला झड़ रही है ।जबकि किसान की रोमचिचली ग्राम में कृषि भूमि ही उसके जीवनयापन का एकमात्र  सहारा थी ।किसान खुद की खेती के साथ मुनाफे पर दूसरे किसानो की जमीन पर भी बटाई से खेती  करता था ।पुरे मामले में सोसाईट नोट में मानसिक तनाव की बात ने पुलिस की दुविधा बड़ा दी है ।ओर किसान की आत्महत्या ने सरकार को कटघरे में  खड़ा कर दिया  है
 खरगोन जिले में बीते साल कई किसानों ने कर्ज के बोझ तले आत्महत्या की और कदम बढाया। यह मुद्दा विधानसभा में भी उठा था। गौरतलब है कि बीते तीन वर्षों से लगातार खरीफ और रबी सीजन की फसलों पर ओलावृष्टी का प्रभाव हो रहा है। जिसके चलते किसान ,बैंको से लिया कर्ज नहीं चुका सके है , अकेले निमाड़ अंचल में  विभिन्न निजी बैंकों और सोसायटियों के करीब ढाई लाख से अधिक कर्जदार है। पिछले दिनों निमाड़ अंचल में हुई घटनाओं पर निगाह डाले तो पाते है की पिछले एक माह की अवधि के दौरान  कुल तीन  किसानो ने जहर पीकर जा दे चुके है ,और एक किसान ने जहर पीकर जान देना चाहा , जिसे बचा लिया गया।   

शनिवार, 14 फ़रवरी 2015

" वेदुर्य मणि " नामक टापू पर स्थित है . ओम्कारेश्वर ..

 मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में सतपुड़ा और विंध्यांचल पर्वत श्रंखलाओं के बीच
" वेदुर्य मणि " नामक टापू पर स्थित है .  ओम्कारेश्वर ... जिसे मान्धाता ओम्कारेश्वर भी कहा जाता है . इस टापू पर दो ऊँची पहाड़ियां है . दोनों पहाड़ियों के बीच,एक घाटी है जो पहाड़ियों को दो हिस्सों में विभाजित करती है . जो उंचाई से  ॐ  आकार प्रस्तुत करती है . ॐ आकार पर्वत की  उत्तर दिशा में कावेरी नदी और दक्षिन दिशा में नर्मदा नदी बहती है . यहीं पर बसा है ओम्कारेश्वर ...

एक किवदन्ती के आधार पर माना जाता है की इक्ष्वाकु वंश के राजा मान्धाता जो की भगवान् राम के पूर्वज थे , ने यहाँ कठोर तपस्या की ,जिसके परिणाम स्वरूप भगवान् शिव ने उन्हें ओमकार स्वरूप के दर्शन दिए . उसी स्थान पर ओम्कारेश्वर मंदिर है .यही वजह है की आज भी राजा मान्धाता का सिंहासन ओम्कारेश्वर मंदिर में रखा है .  
पुण्य सलिला नर्मदा नदी के उत्तर एवं ओमकार पर्वत के दक्षिन तट पर  स्थित है ,प्राण प्रणव ओम्कारेश्वर .यह मंदिर नर्मदा नदी के किनारे है . जिनकी महिमा ही निराली है ,नदी के दक्षिणी तट पर पार्थिव लिंग स्वरूप में ममलेश्वर ज्योर्तिलिंग है , जो देश के ख्यात बारह ज्योर्तिलिंगो में से एक है .

नर्मदा के उत्तरी तट पर ओमकार मंदिर के समीप  आदि शंकराचार्य की गुफा है ,  विकम संवत 745 को इसी स्थान पर आदि शंकराचार्य ने अपने गुरु गोविन्दाचार्य से दीक्षा ली थी . जिसे गोविन्देश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है . 
ओम्कारेश्वर ... एक एसा तीर्थ स्थल,  जहाँ पर धर्म , संस्क्रती और इतिहास से रूबरू होने को मिलता है . यहाँ  कल -कल बहती नर्मदा नदी की पावन जलधारा भी है जो तन - मन को पवित्र करती है . जिसे माँ नर्मदा भी कहा गया है .जिसके दर्शन मात्र से मनुष्य पापमुक्त हो जाता है .नर्मदा पुराण में माँ नर्मदा की इसी महिमा का उल्लेख है . दोनों पर्वत शिखरों के मध्य बहने वाली नर्मदा नदी मध्य में गहराई लिए है .  नर्मदा और कावेरी नदी का संगम स्थल ही ओमकार पर्वत को टापू का स्वरूप प्रदान करता है .

इंदौर - खंडवा सडक एवं रेलमार्ग पर बसे मोरटक्का से बारह किलोमीटर सडक मार्ग की दुरी तय करके ओम्कारेश्वर तक पहुंचा जा सकता है . खंडवा जिले की ओम्कारेश्वर नगर पंचायत क्षेत्र में बसा है ओम्कारेश्वर . यहाँ एतिहासिक महत्व के कई मंदिर है .जो केन्द्रीय एवं राज्य पुरातत्व के अधीन है . जिनमे ओम्कारेश्वर ,ममलेश्वर ,गौरी सोमनाथ एवं बारहद्वारी सिद्धनाथ महादेव मंदिर प्रमुख है . नर्मदा घाट से ओम्कारेश्वर के मुख्य मंदिर तक कोटेश्वर ,हाटकेश्वर ,राज राजेश्वर ,त्र्यम्बकेश्वर ,गायत्रेश्वर, गोविन्देश्वर ,सावित्रेश्वर शिव मंदिर है . ओमकार पर्वत की परिक्रमा मार्ग पर एतिहासिक गौरी सोमनाथ मंदिर , बारहद्वारी सिद्धनाथ महादेव मंदिर , पातली हनुमान के अलावा वानर भोजशाला से भी परिचय करने को मिलता है . परिक्रमा मार्ग पर कई एतिहासिक द्वार है , जिनमे  चाँद -सूरज द्वार , हुंडी - कुण्डी द्वार , भीम द्वार एवं पाण्डव द्वार जीर्ण शीर्ण होकर टूटने की कगार पर है .   

तीर्थ स्थली ओम्कारेश्वर में विकसित  भारत के दर्शन भी होते है . नदी पार कर ओम्कारेश्वर तक पहुँचने हेतु बनाया गया " पुल" जिसकी अत्यधिक लंबाई होने के बावजूद उसके मध्य में आधार नही है . कुशल इंजीनियरिंग का नमूना है . इसके अलावा नर्मदा हाइड्रो इलेक्ट्रिक कम्पनी द्वारा  ऋषिकेश के लक्ष्मन झुला की तर्ज पर नया ममलेश्वर सेतु  भी बनाया गया है . जो ओम्कारेश्वर मंदिर का अतिरिक्त पहुँच मार्ग है . विशेष धार्मिक अवसरों पर इसका अत्यधिक उपयोग होता है . इसी सेतु से 520 मेघावाट विद्युत उत्पादन क्षमता का  ओम्कारेश्वर बाँध दिखाई देता है . 

देश - विदेश से प्रतिदिन हजारो श्रद्धालु ओम्कारेश्वर पहुचते है . विशेष अवसरों पर यह संख्या लाखो में होती है . जो यहाँ आकर धार्मिक सांस्क्रतिक और एतिहासिक विरासत से रूबरू होते है .क्योकि यहाँ के प्रत्येक मंदिरों के एतिहासिक महत्व के साथ उसके धार्मिक महत्व की कहानियाँ और मंदिरों में निभाई जा रही परम्परा कुछ अलग ही सन्देश देती है 

. अनंत महेश्वरी खंडवा [मध्य प्रदेश ] 

खण्डवा शहर के मध्य स्थित घण्टाघर में लगी गोलाकार घड़ियों का इतिहास भी घंटाघर जितना पुराना है।

शहर का वास्तुदोष दूर करने के लिए बदली घड़ियाँ
खंडवा शहर के मध्य घण्टाघर में लगी हुई ऐतिहासिक घड़ी के स्थान पर नई घड़ियाँ लगा जा चुकी है। जो मुम्बई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनल रेलवे स्टेशन पर लगाई गई घडी से , आकार में बड़ी है , खंडवा नगर निगम का दावा है कि उन्होंने मुम्बई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनल रेलवे स्टेशन पर लगाई गई घडी से बड़े आकार कि घडी खंडवा के घंटाघर में में लगाई है ।
कहते है कि बंद घड़ियाँ वास्तुदोष का प्रतीक होती है , खंडवा शहर के घंटाघर में लगी चार घड़ियाँ वर्षो से बंद पड़ी थी , जिसपर निगम का ध्यान आकृष्ट करवाया एक जैन मुनि ने , जिनके कहे अनुसार खंडवा शहर के घंटाघर में लगी प्राचीन घडीयों के स्थान पर नई इलेक्ट्रानिक घड़ियाँ लगाई जा रही है ,यह प्रक्रिया भले ही देखने में भले ही सहज लगती हो , लेकिन यह बमुश्किल सम्भव हो पायी है। क्योंकि पुरानी घडी के ना तो कलपुर्जे नहीं मिल रहे थे और ना ही उसे सुधारने वाला कोई कारीगर , सवा तीन फुट व्यास वाली घड़ियाँ मार्केट में उपलब्ध नहीं है। खंडवा नगर निगम ने घड़ियों कि तलाश में कई घडी निर्माता कम्पनियों से संपर्क किया लेकिन उन्होंने इस आकार कि घडी बनाने में असमर्थता जाहिर कि , बड़े आकार कि घड़ियों कि तलाश में जुटी खंडवा नगर निगम को आखिरकार रतलाम में विराम मिला
मुम्बई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनल रेलवे स्टेशन पर लगी हुई गोलाकार घडी का व्यास सवा दो फुट है , खंडवा के घंटाघर में लगाईं जा रही घडी का व्यास सवा तीन फुट है। खंडवा के घंटाघर हेतु सवा तीन फिट व्यास आकार वाली घडी बनाने का काम रतलाम के घड़ीसाज ने हाथ में लिया , रतलाम के फयाज मोहम्मद अंसारी कि पाँच पीढ़ियोँ घड़ीसाज का काम करती रही है . इसके पूर्व इस घड़ीसाज ने रतलाम के महल और सैलाना के घंटाघर में लगी प्राचीन घड़ियों का सुधार कार्य किया है।
खण्डवा शहर के मध्य स्थित घण्टाघर में लगी गोलाकार घड़ियों का इतिहास भी घंटाघर जितना पुराना है। खंडवा शहर का घंटाघर एक प्रमुख भूमि-चिह्न है। इस घंटाघर को मुल्तान का क्लॉक टॉवर भी कहा जाता है। इसका निर्माण 1884 में अग्रेंजों ने भारत में अपने शासनकाल दौरान किया। 1883 के नगरपालिका अधिनियम अनुसार, इस इमारत का मुख्य उद्देश्य एक कार्यालय के रुप में काम करना था।  इस टॉवर का निर्माणकार्य 12 फरवरी 1884 में शुरु किया गया, और इसे पूरा करने में कुल 4 साल लग गए। वास्तव में, इस घंटाघर को मुल्तान की घेराबंदी में नष्ट हुई अहमद खान सदोज़ै की हवेली के अवशेष पर बनाया गया है। इस क्लॉक टॉवर को पहले नार्थब्रूक टॉवर कहते थे जो (1872-1876) उस समय के भारत के वाइसराय का नाम था। घंटाघर के हॉल को रिपन हॉल कहते थे, जो भारत की स्वतंत्रता के बाद जिन्ना हॉल कहा जाने लगा। 
घंटाघर के टावर पर चारो दिशाओं में  सवा तीन फुट व्यास वाली चार गोलाकार घड़ियाँ पायोनियर कम्पनी से बनवाकर लगाई गई थी ,घण्टाघर में लगी प्राचीन घडी को वजन और चाबी से चलाया जाता था। जिसकी देखरेख के लिए इन्स्पेक्टर नियुक्त किया गया था। प्रत्येक दो वर्ष के अंतराल में प्राचीन घड़ी का रखरखाव होता था , जिसके भी सख्त नियम थे , एक नियम पट्टिका आज भी घंटाघर के भीतरी भाग में लगी हुई है जिस पर साफ़ लिखा है कि घडी के इंस्टालेशन कि जाँच प्रत्येक दो वर्ष में कि जावे और इंस्पेकटर साहिब द्वारा मंजूर किये गए फ़ार्म पर इसकी रिपोर्ट कि जावे। खंडवा नगर निगम द्वारा घंटाघर कि ऐतिहासिक घडी के स्थान पर वर्त्तमान में जो घड़ियाँ लगाई जा रही है वह लगभग बीस किलो वजनी और वाटरप्रूफ होते हुए इलेक्ट्रानिक घड़ी है , जिसका रखरखाव भी दो वर्ष पश्चात किया जावेगा।
शहर के अवरुध्द विकास को गति देने के इरादे से घंटाघर में बंद घड़ियाँ के स्थान पर निगम ने नई घड़ियाँ लगाकर शहर का वास्तुदोष तो दूर कर लिया। लेकिन सिर्फ घड़ियाँ बदलने से शहर का विकास नहीं होता , शहर के विकास के लिए निगम को जनहितैशी कार्ययोजना बनाकर उसे मूर्त रूप देने से ही विकास सम्भव होगा। यह बात भी समझनी होगी।
अनंत माहेश्वरी खंडवा

खंडवा में देवी भवानी कि प्रतिमा दिन के तीन अलग -अलग पहर में तीन अलग -अलग रूप में दर्शन देती है।
भगवान श्री राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पहले खंडवा कि माता भवानी से अस्त्र-शस्त्र वरदान में प्राप्त किये
खंडवा , वह शहर है जिसका इतिहास में खाण्डवाहो के नाम से जिक्र किया गया है , किवदंती है कि रामायण में वर्णित खाण्डव वन के स्थान पर ही बसा है खंडवा। जहां स्व्यंभू भवानी माता का मंदिर है। इस मंदिर से यह कथा भी जुडी हुई है कि भगवान श्री राम ने खाण्डव वनो में वनवास के दौरान इसी मंदिर में माता भवानी कि आराधना कि और लंका पर चढ़ाई करने से पहले माता भवानी से अस्त्र-शस्त्र वरदान में प्राप्त किये थे , तो कुछ लोगो का मत है कि खांडव वनो में खर-दूषण का आतंक ख़त्म करने के लिए भगवान् राम ने माता भवानी से अस्त्र-शस्त्र वरदान में प्राप्त किये। खंडवा के इस चमत्कारी मंदिर कि विशेषता यह है कि यहाँ देवी कि प्रतिमा दिन के तीन अलग -अलग पहर में तीन अलग -अलग रूप में दर्शन देती है। याने हर तीन घंटे में देवी का स्वरुप बदल जाता है। पहले पहर में दर्शन करने वाले भक्त को माता बाल्य स्वरुप में दिखाई देती है। दूसरे पहर में माता का युवा रूप दर्शित होता है और तीसरे पहर में माता वृद्ध स्वरुप में दिखाई देती है।
भवानी माता मंदिर में प्रवेश करते ही दाहिने ओर गणेश प्रतिमा है , बायीं ओर अन्नपूर्णा देवी के पास ही लक्ष्मी नारायण के दर्शन होते है।तो देवी अन्नपूर्णा के सामने ही शीश कटे भैरव के दर्शन भी हो जाते है। लेकिन इस मंदिर कि सबसे खास बात है कि माता अन्नपूर्णा कि प्रतिमा के ठीक निचे तांत्रिक महत्व वाली चौसठ जोगिनी कि प्रतिमा एक ही शीला पर दिखाई देती है , जो इस मंदिर के शक्तिपीठ होने कि और इशारा करती है , यही नहीं इस मंदिर परिसर में दीप स्तंभ भी है जिस पर विशेष अवसरों पर एक सौ आठ दीप जलाये जाते है। यह दीप स्तम्भ माता प्रतिमा के सम्मुख है जिस पर शंखो कि सजावट कि गई है , दक्षिण भारत के शक्तिपीठ में इसी प्रकार के दीप स्थल मिलते है , यह दीप स्तम्भ भी इस मंदिर के पुरातन और धार्मिक महत्व को दर्शाता है।जीर्णोद्वार के बाद मंदिर को आधुनिक स्वरुप तो प्रदान कर दिया लेकिन मंदिर कि पवित्रता बरकरार रखने के उद्देश्य से इस मंदिर को शंख और कलश कि आकृति नुमा दीवार बनाई गई , यही नहीं पानी कि विशाल शंख स्वरुप में पानी कि टंकी बनाई गई।
कभी सिंधिया स्टेट कि मिल्कियत रहे , खंडवा के भवानी माता मंदिर कि छह पीढ़ियों से देखरेख कर रहे पंडित राजेन्द्र के अनुसार भवानी माता का यह मंदिर महाभारत और रामायण काल का साक्षी रहा है , जिसका जीर्णोद्वार किये जाने के बाद यह वर्मान स्वरुप में है। भवानी माता मंदिर कि नियत दिनचर्या के हिसाब से सेवा -आराधना कि जाती है , मंदिर में देवी कि प्रतिमा का दिन में दो बार श्रंगार किया जाता है।यहाँ वर्ष में दो बार विशेष पूजा कि जाती है जिसमे लाखो कि संख्या में भक्त आते है और अपनी मनचाही मुराद पूरी करते है
मंदिर के बाहर पूजा सामग्री बेचने वाले बताते है कि देवी के श्रंगार कि सामग्री चढ़ाने से भक्तो कि मनोकामना पूरी होती है , कुछ भक्त मनोकामना पूरी होने पर देवी को श्रंगार सामग्री भेंट के रूप में अर्पित करते है ,मंदिर में आने वाले भक्त भी मानते है कि मंदिर चमत्कारी है। भवानी माता अपने भक्तो कि हर मुराद पूरी करती है। कहते है कि माता के दरबार से कोई खाली हाथ नहीं जाता। किसी कि मुराद पूरी होती है तो किसी को मुफ्त में भरपेट भोजन मिलता है पिछले चौबीस वर्षों से भवानी माता मंदिर परिसर में नि:शक्त जनो के लिए राम कृष्ण ट्रस्ट सेवा केंद्र , दानदाताओं के माध्यम से मुफ्त भोजन उपलब्ध करवा रहा है.
अनंत माहेश्वरी खंडवा

"खंडवा" अवधूत संत केशवानन्द की तपोभूमि

मध्यप्रदेश के खंडवा में संत दादाजी धुनि वाले की समाधि है ,खंडवा अवधूत संत केशवानन्द की तपोभूमि कहलाता है । हमेशा अपने सामने “आग” की धुनी रमाये रखने वाले संत की समाधि खंडवा में है । जिन्हें भक्त दादाजी धुनी वाले के नाम से जानते है। हर साल गुरुपूर्णिमा पर देश भर के लाखो भक्त सैकड़ो किलोमीटर की पैदल यात्रा करके इनके दरबार में माथा टेकने आते है । खंडवा में गुरुपूर्णिमा पर्व के दौरान आने वाले भक्तों को चाय ,नाश्ता , विभिन्न प्रकार के पकवान के अलावा आने -जाने के लिए टेक्सी और दवाइयां “मुफ्त” में मिलती है 
पटेल सेवा ट्रस्ट के कोमलभाउ आखरे बताते है की दादा जी के चमत्कारों की अनुभूति आज भी भक्तों को होती रहती है । यही वजह है की भक्तजन नंगे पैर सैकड़ों किलोमीटर की दुरी तय करके खंडवा पहुंचे है , उनकी जुबान पर यही नाम रहता है , भज लो दादाजी का नाम , भज लो हरिहर जी का नाम अवधूत संत केशवानंद की कई लीलाए है , भक्तो को कई भी मत्कार दिखाए ।
गुरु -शिष्य परम्परा की अनोखी मिसाल सिर्फ खंडवा में देखने को मिलती है । खंडवा के दादा दरबार में बड़े दादाजी और छोटे दादाजी की समाधि है । बड़े दादाजी को भक्तजन शिव का अवतार, और छोटे दादाजी को विष्णु का अवतार मानकर पूजा जाता है। सेवा ट्रस्ट के मदन ठाकरे बताते है की ” बड़े दादाजी खंडवा में वर्ष 1930 में खंडवा आये और मात्र तीन दिन रहने के बाद खंडवा में समाधि ले ली। उनके बाद छोटे दादाजी ने बारह वर्षों तक आश्रम का संचालन करने के बाद यही समाधि ले ली। उन्होंने जो चौबिस नियम बनाये उसमे गृहस्थ जीवन का सार समाया हुआ है , उन्होंने गुरु मर्यादा , गुरु भक्ति और गुरु की सेवा कैसे करना यह सिखाया। उन्होंने सुचिता ,पवित्रता और सत्यता की सीख दी । हवन पूजन और भोजन के बारे में भक्तों को नियम सिखाये।
मदन ठाकरे बताते है की अंग्रेज सरकार ने दादाजी को “गॉड” मानते हुए , उन्हें ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया , दादाजी के द्वारा किये चमत्कार विज्ञान के लिए चुनौती साबित हुए , गुरुपूर्णिमा पर्व के दौरान नगरवासी , जात -पात और धर्म का भेद मिटाकर, बाहर से आने वाले भक्तों की सेवा करते है ।
गुरु पूर्णिमा पर खंडवा नगर में आने वाले मेहमानों का स्वागत , पूरा शहर मिलकर करता है ,शहर में प्रवेश करते ही श्रधालुओं की आवभगत शुरू हो जाती है, इस पर्व में लोगो का सेवा भाव और हिन्दू -मुस्लिम एकता का अनोखा रूप देखने को मिलता है । गुरुपूर्णिमा के दौरान खंडवा में दो सौ से अधिक भंडारे आयोजित किये जाते है । अगर आप की जेब में फूटी कौड़ी भी ना हो तो चिंता की कोई बात नहीं खंडवा में चल रहे गुरुपूर्णिमा के पर्व पर आप मनपसन्द खाना खा सकते है वह भी मुफ्त । सिर्फ खाना ही नहीं खंडवा में चाय ,नाश्ता , विभिन्न प्रकार के पकवान के साथ आने -जाने के लिए टेक्सी और स्वास्थ्य सेवाएं , दवाइयां भी मुफ्त मिलती है. मुफ्त की यह व्यवस्था सरकार नहीं बल्कि खंडवा के निवासी आपसी सहयोग से करते है , खंडवा के नागरिको के सेवाभाव को देखकर यह कहा जा सकता है की गुरुपूर्णिमा पर्व के दो दिनों तक खंडवा “दादाजी धाम” हो जाता है .
खंडवा के दादाजीधाम पर गुरूपूर्णिमा उत्सव में शामिल होने आ रहे भक्तों की आस्था देखते ही बनती है । जहां भक्तगण नंगे पैर हजारों किलोमीटर की यात्रा कर पहुंच रहे हैं । महाराष्ट्र के जलगांव जिले के भक्तगण पिछले साहठ वर्षों से खंडवा तक कुल 250 किलोमीटर की दुरी नंगे पैर पैदल चलकर तय करते है । भक्तों के कंधों पर होती है धर्म ” ध्वजा ” जिसे निशान के नाम से जाना जाता है । जिसे वे गुरुपूर्णिमा पर दादाजी के मंदिर के शिखर पर चढ़ाते है । कई भक्त अपने साथ रथ खींचकर खंडवा लाते है । जलगांव से अपने सौ साथियों के साथ सात दिनों की पैदल यात्रा करके खंडवा पहुंचे दादाजी भक्त रामकृष्ण पटेल बताते है की रास्ते में उनके पैरों के छाले हो जाते है कई प्रकार की मुसीबत सामने आती है लेकिन वे दादाजी नाम के सहारे आगे बढ़ते जाते है उन्हें इतना पैदल चलने की शक्ति दादाजी ही देते है। खंडवा आकर उन्हें जो ख़ुशी होती है वह बयान नहीं की जा सकती।
खंडवा में गुरुपूर्णिमा पर्व पर दादाजीधाम पहुंचने वाले भक्तों की संख्या , लाखों में होती है। इस महंगाई के जमाने में तीन लाख मेहमानों की मेजबानी करना आसान नहीं है . गुरुपूर्णिमा पर्व पर खंडवा वासियों द्वारा भक्तो की निस्वार्थ सेवा ” अतिथि देवो भव ” मानने वाली भारतीय संस्कृति का जीवंत उदाहरण है ।
अनंत माहेश्वरी