शनिवार, 14 फ़रवरी 2015

" वेदुर्य मणि " नामक टापू पर स्थित है . ओम्कारेश्वर ..

 मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में सतपुड़ा और विंध्यांचल पर्वत श्रंखलाओं के बीच
" वेदुर्य मणि " नामक टापू पर स्थित है .  ओम्कारेश्वर ... जिसे मान्धाता ओम्कारेश्वर भी कहा जाता है . इस टापू पर दो ऊँची पहाड़ियां है . दोनों पहाड़ियों के बीच,एक घाटी है जो पहाड़ियों को दो हिस्सों में विभाजित करती है . जो उंचाई से  ॐ  आकार प्रस्तुत करती है . ॐ आकार पर्वत की  उत्तर दिशा में कावेरी नदी और दक्षिन दिशा में नर्मदा नदी बहती है . यहीं पर बसा है ओम्कारेश्वर ...

एक किवदन्ती के आधार पर माना जाता है की इक्ष्वाकु वंश के राजा मान्धाता जो की भगवान् राम के पूर्वज थे , ने यहाँ कठोर तपस्या की ,जिसके परिणाम स्वरूप भगवान् शिव ने उन्हें ओमकार स्वरूप के दर्शन दिए . उसी स्थान पर ओम्कारेश्वर मंदिर है .यही वजह है की आज भी राजा मान्धाता का सिंहासन ओम्कारेश्वर मंदिर में रखा है .  
पुण्य सलिला नर्मदा नदी के उत्तर एवं ओमकार पर्वत के दक्षिन तट पर  स्थित है ,प्राण प्रणव ओम्कारेश्वर .यह मंदिर नर्मदा नदी के किनारे है . जिनकी महिमा ही निराली है ,नदी के दक्षिणी तट पर पार्थिव लिंग स्वरूप में ममलेश्वर ज्योर्तिलिंग है , जो देश के ख्यात बारह ज्योर्तिलिंगो में से एक है .

नर्मदा के उत्तरी तट पर ओमकार मंदिर के समीप  आदि शंकराचार्य की गुफा है ,  विकम संवत 745 को इसी स्थान पर आदि शंकराचार्य ने अपने गुरु गोविन्दाचार्य से दीक्षा ली थी . जिसे गोविन्देश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है . 
ओम्कारेश्वर ... एक एसा तीर्थ स्थल,  जहाँ पर धर्म , संस्क्रती और इतिहास से रूबरू होने को मिलता है . यहाँ  कल -कल बहती नर्मदा नदी की पावन जलधारा भी है जो तन - मन को पवित्र करती है . जिसे माँ नर्मदा भी कहा गया है .जिसके दर्शन मात्र से मनुष्य पापमुक्त हो जाता है .नर्मदा पुराण में माँ नर्मदा की इसी महिमा का उल्लेख है . दोनों पर्वत शिखरों के मध्य बहने वाली नर्मदा नदी मध्य में गहराई लिए है .  नर्मदा और कावेरी नदी का संगम स्थल ही ओमकार पर्वत को टापू का स्वरूप प्रदान करता है .

इंदौर - खंडवा सडक एवं रेलमार्ग पर बसे मोरटक्का से बारह किलोमीटर सडक मार्ग की दुरी तय करके ओम्कारेश्वर तक पहुंचा जा सकता है . खंडवा जिले की ओम्कारेश्वर नगर पंचायत क्षेत्र में बसा है ओम्कारेश्वर . यहाँ एतिहासिक महत्व के कई मंदिर है .जो केन्द्रीय एवं राज्य पुरातत्व के अधीन है . जिनमे ओम्कारेश्वर ,ममलेश्वर ,गौरी सोमनाथ एवं बारहद्वारी सिद्धनाथ महादेव मंदिर प्रमुख है . नर्मदा घाट से ओम्कारेश्वर के मुख्य मंदिर तक कोटेश्वर ,हाटकेश्वर ,राज राजेश्वर ,त्र्यम्बकेश्वर ,गायत्रेश्वर, गोविन्देश्वर ,सावित्रेश्वर शिव मंदिर है . ओमकार पर्वत की परिक्रमा मार्ग पर एतिहासिक गौरी सोमनाथ मंदिर , बारहद्वारी सिद्धनाथ महादेव मंदिर , पातली हनुमान के अलावा वानर भोजशाला से भी परिचय करने को मिलता है . परिक्रमा मार्ग पर कई एतिहासिक द्वार है , जिनमे  चाँद -सूरज द्वार , हुंडी - कुण्डी द्वार , भीम द्वार एवं पाण्डव द्वार जीर्ण शीर्ण होकर टूटने की कगार पर है .   

तीर्थ स्थली ओम्कारेश्वर में विकसित  भारत के दर्शन भी होते है . नदी पार कर ओम्कारेश्वर तक पहुँचने हेतु बनाया गया " पुल" जिसकी अत्यधिक लंबाई होने के बावजूद उसके मध्य में आधार नही है . कुशल इंजीनियरिंग का नमूना है . इसके अलावा नर्मदा हाइड्रो इलेक्ट्रिक कम्पनी द्वारा  ऋषिकेश के लक्ष्मन झुला की तर्ज पर नया ममलेश्वर सेतु  भी बनाया गया है . जो ओम्कारेश्वर मंदिर का अतिरिक्त पहुँच मार्ग है . विशेष धार्मिक अवसरों पर इसका अत्यधिक उपयोग होता है . इसी सेतु से 520 मेघावाट विद्युत उत्पादन क्षमता का  ओम्कारेश्वर बाँध दिखाई देता है . 

देश - विदेश से प्रतिदिन हजारो श्रद्धालु ओम्कारेश्वर पहुचते है . विशेष अवसरों पर यह संख्या लाखो में होती है . जो यहाँ आकर धार्मिक सांस्क्रतिक और एतिहासिक विरासत से रूबरू होते है .क्योकि यहाँ के प्रत्येक मंदिरों के एतिहासिक महत्व के साथ उसके धार्मिक महत्व की कहानियाँ और मंदिरों में निभाई जा रही परम्परा कुछ अलग ही सन्देश देती है 

. अनंत महेश्वरी खंडवा [मध्य प्रदेश ] 

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