शहर का वास्तुदोष दूर करने के लिए बदली घड़ियाँ
खंडवा शहर के मध्य घण्टाघर में लगी हुई ऐतिहासिक घड़ी के स्थान पर नई घड़ियाँ लगा जा चुकी है। जो मुम्बई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनल रेलवे स्टेशन पर लगाई गई घडी से , आकार में बड़ी है , खंडवा नगर निगम का दावा है कि उन्होंने मुम्बई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनल रेलवे स्टेशन पर लगाई गई घडी से बड़े आकार कि घडी खंडवा के घंटाघर में में लगाई है ।
खंडवा शहर के मध्य घण्टाघर में लगी हुई ऐतिहासिक घड़ी के स्थान पर नई घड़ियाँ लगा जा चुकी है। जो मुम्बई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनल रेलवे स्टेशन पर लगाई गई घडी से , आकार में बड़ी है , खंडवा नगर निगम का दावा है कि उन्होंने मुम्बई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनल रेलवे स्टेशन पर लगाई गई घडी से बड़े आकार कि घडी खंडवा के घंटाघर में में लगाई है ।
कहते है कि बंद घड़ियाँ वास्तुदोष का प्रतीक होती है , खंडवा शहर के घंटाघर में लगी चार घड़ियाँ वर्षो से बंद पड़ी थी , जिसपर निगम का ध्यान आकृष्ट करवाया एक जैन मुनि ने , जिनके कहे अनुसार खंडवा शहर के घंटाघर में लगी प्राचीन घडीयों के स्थान पर नई इलेक्ट्रानिक घड़ियाँ लगाई जा रही है ,यह प्रक्रिया भले ही देखने में भले ही सहज लगती हो , लेकिन यह बमुश्किल सम्भव हो पायी है। क्योंकि पुरानी घडी के ना तो कलपुर्जे नहीं मिल रहे थे और ना ही उसे सुधारने वाला कोई कारीगर , सवा तीन फुट व्यास वाली घड़ियाँ मार्केट में उपलब्ध नहीं है। खंडवा नगर निगम ने घड़ियों कि तलाश में कई घडी निर्माता कम्पनियों से संपर्क किया लेकिन उन्होंने इस आकार कि घडी बनाने में असमर्थता जाहिर कि , बड़े आकार कि घड़ियों कि तलाश में जुटी खंडवा नगर निगम को आखिरकार रतलाम में विराम मिला
मुम्बई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनल रेलवे स्टेशन पर लगी हुई गोलाकार घडी का व्यास सवा दो फुट है , खंडवा के घंटाघर में लगाईं जा रही घडी का व्यास सवा तीन फुट है। खंडवा के घंटाघर हेतु सवा तीन फिट व्यास आकार वाली घडी बनाने का काम रतलाम के घड़ीसाज ने हाथ में लिया , रतलाम के फयाज मोहम्मद अंसारी कि पाँच पीढ़ियोँ घड़ीसाज का काम करती रही है . इसके पूर्व इस घड़ीसाज ने रतलाम के महल और सैलाना के घंटाघर में लगी प्राचीन घड़ियों का सुधार कार्य किया है।
खण्डवा शहर के मध्य स्थित घण्टाघर में लगी गोलाकार घड़ियों का इतिहास भी घंटाघर जितना पुराना है। खंडवा शहर का घंटाघर एक प्रमुख भूमि-चिह्न है। इस घंटाघर को मुल्तान का क्लॉक टॉवर भी कहा जाता है। इसका निर्माण 1884 में अग्रेंजों ने भारत में अपने शासनकाल दौरान किया। 1883 के नगरपालिका अधिनियम अनुसार, इस इमारत का मुख्य उद्देश्य एक कार्यालय के रुप में काम करना था। इस टॉवर का निर्माणकार्य 12 फरवरी 1884 में शुरु किया गया, और इसे पूरा करने में कुल 4 साल लग गए। वास्तव में, इस घंटाघर को मुल्तान की घेराबंदी में नष्ट हुई अहमद खान सदोज़ै की हवेली के अवशेष पर बनाया गया है। इस क्लॉक टॉवर को पहले नार्थब्रूक टॉवर कहते थे जो (1872-1876) उस समय के भारत के वाइसराय का नाम था। घंटाघर के हॉल को रिपन हॉल कहते थे, जो भारत की स्वतंत्रता के बाद जिन्ना हॉल कहा जाने लगा।
घंटाघर के टावर पर चारो दिशाओं में सवा तीन फुट व्यास वाली चार गोलाकार घड़ियाँ पायोनियर कम्पनी से बनवाकर लगाई गई थी ,घण्टाघर में लगी प्राचीन घडी को वजन और चाबी से चलाया जाता था। जिसकी देखरेख के लिए इन्स्पेक्टर नियुक्त किया गया था। प्रत्येक दो वर्ष के अंतराल में प्राचीन घड़ी का रखरखाव होता था , जिसके भी सख्त नियम थे , एक नियम पट्टिका आज भी घंटाघर के भीतरी भाग में लगी हुई है जिस पर साफ़ लिखा है कि घडी के इंस्टालेशन कि जाँच प्रत्येक दो वर्ष में कि जावे और इंस्पेकटर साहिब द्वारा मंजूर किये गए फ़ार्म पर इसकी रिपोर्ट कि जावे। खंडवा नगर निगम द्वारा घंटाघर कि ऐतिहासिक घडी के स्थान पर वर्त्तमान में जो घड़ियाँ लगाई जा रही है वह लगभग बीस किलो वजनी और वाटरप्रूफ होते हुए इलेक्ट्रानिक घड़ी है , जिसका रखरखाव भी दो वर्ष पश्चात किया जावेगा।
शहर के अवरुध्द विकास को गति देने के इरादे से घंटाघर में बंद घड़ियाँ के स्थान पर निगम ने नई घड़ियाँ लगाकर शहर का वास्तुदोष तो दूर कर लिया। लेकिन सिर्फ घड़ियाँ बदलने से शहर का विकास नहीं होता , शहर के विकास के लिए निगम को जनहितैशी कार्ययोजना बनाकर उसे मूर्त रूप देने से ही विकास सम्भव होगा। यह बात भी समझनी होगी।
अनंत माहेश्वरी खंडवा
अनंत माहेश्वरी खंडवा
अदभुत।
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