मै खंडवा हूँ
लोग मुझे खंडवा के नाम से जानते है , लेकिन मेरे अत्तीत को नहीं ,
मै खंडवा हूँ , जो द्वापर युग की महाभारत , त्रेतायुग की रामायण और जैन धर्मो की कथाओं में किसी ना किसी नाम से जाना -जाता रहा हूँ।
सिर्फ कुछ लोग ही यह जानते है की रामायण में वर्णित खांडव वन के स्थान पर बसा हुआ है "खंडवा" जहां वनवास के दौरान भगवान राम ने चौदह वर्ष बिताये ,
खंडवा , जहां स्व्यंभू भवानी माता का मंदिर है। इस मंदिर से यह कथा भी जुडी हुई है कि खाण्डव वनो में वनवास के दौरान भगवान श्री राम ने इसी मंदिर में माता भवानी कि आराधना कि
और लंका पर चढ़ाई करने से पहले माता भवानी से अस्त्र-शस्त्र वरदान में प्राप्त किये।
ग्याहरवीं सदी के इतिहास में , अरबी भूगोलशास्त्री ने खांडवाहो के नाम से मेरा जिक्र किया। तब यह वनक्षेत्र गौंड राजाओं के आधिपत्य में था। इतिहासकार अबुल फजल ने लिखा की यहां के गौंड
शेरो को पालतू पशु की तरह रखते हुए उनसे मनचाहा काम लेते थे।
बाहरवी सदी में मेरा विकास तब आरम्भ हुआ , जब राजस्थान से ,तीन सौ हूमड़ मेरे अंचल में आकर बस गए।
जैन धर्मावलम्बी हूमड़ ने खंडवा शहर के विकास की नींव रखी। जिहोने चौर्यासी मंदिर और चौर्यासी बावड़ियों का निर्माण करवाया। नगर की चार दिशाओं में निर्मित चारो कुण्ड उसी काल की जीवंत निशानी बतौर आज भी मौजूद है।
तब जैन धर्म ग्रंथों में मुझे "खेड़वा" के नाम से जाना जाता था।
बाहरवी सदी से पंद्रहवी सदी तक जैन ग्रंथों में रहे खेड़वा यानी खंडवा का जिक्र पंद्रहवी सदी के इतिहास में फिर हुआ। फरिश्ता नामक इतिहासकार ने लिखा की 1516 ईश्वी में खंडवा मालवा के राजवंश के अधीन था। 1802 ईश्वी में जसवंतराव होल्कर खंडवा को जलाकर नष्ट करना चाहा। 1858 के दौरान टांटिया टोपे ने खंडवा को पुनः नष्ट कर दिया , लेकिन मेरा विकास रुका नहीं , वर्ष 1872 में मेरे अंचल में रहने वालो की संख्या सिर्फ पंद्रह हजार थी। जो बर्ष 1901 में बढ़कर बीस हजार के लगभग हो गई। तब से जनसंख्या के विकास का दौर आज भी चला आ रहा है ,
आध्यात्मिक लोग मुझे याने खंडवा को दादाजी धूनीवाले की पवित्र नगरी बतौर पहचानते है , तो साहित्यकार मुझे पद्मश्री पंडित माखनलाल चतुर्वेदी की कर्मभूमि के नाम से भी जानते है , फ़िल्मी दुनिया से ताल्लुक रखने वालो के लिए खंडवा एक ऐसा नाम है , जिसे कला प्रेमी बढे ही आदर के साथ किशोर कुमार की नगरी के नाम से जानते है।
यही है मेरी पहचान - कला संस्कृति साहित्य और आध्यात्म की मगरी खंडवा।
खंडवा जो विकास के क्रम में कभी नहीं थमा , भागती दौड़ती जिंदगी हो या रफ़्तार का युग , समय के साथ मेरी आंतरिक बनावट में कई बदलाव आये। खंडवा की सड़को पर दौड़ने वाली बैलगाड़ियों की जगह अब तेज रफ़्तार से चलने वाली चमचमाती कारों ने ले ली है। सब कुछ बदला - बदला सा नजर आने लगा है ,
जो नहीं बदला … तो वह है शहर की आंतरिक बनावट।
संकरी सड़के , पतली गलियां , तंग रास्ते . जो कभी बैल गाड़ियों के लिए उपयोग में लाये जाते थे , वहां से दो पहियाँ और चार पहियां वाहन गुजरने लगे है। बढ़ती आबादी के साथ , वाहनो की संख्या भी बढ़ गई।
सड़के खेल मैदान में तो कही पार्किंग स्थल में तब्दील हो गई , इन्ही सड़को पर पसरता अतिक्रमण , सड़को को और भी तंग बना देता है , यह सब देखकर मै बहुत दुखी होता हूँ , क्योंकि मै वही खंडवा हूँ , जो कभी खांडव वन के नाम से जाना जाता था , जिसकी शुद्ध हवा , मन को शान्ति प्रदान करती थी । लेकिन आज मेरे ह्रदय स्थल में बनी सड़को पर आये दिन लगते वाहनो के जाम और उनसे निकलते धुंएँ से मेरा दम घुटने लगा है।
मै भी विकास चाहता हु , लेकिन अपनों को खोकर नहीं। विकास के दौर में जिन्हे मेरे साथ कदमो से कदम मिलाकर चलना था , वह तेज रफ़्तार का शिकार हो गए ,अपनों को खोने का गम मुझे भी है। मै नहीं चाहता की मेरा अपना कोई तेज रफ़्तार का शिकार बने, और किसी के घर का रोशन चिराग हमेशा के लिए बुझ जाए।
सड़कों पर आये दिन होने वाले हादसों को देखकर मेरी रूह काँप उठती है।
वर्ष 2005 से , वर्ष दो हजार चौदह तक के आकड़ों पर नजर डाले , तो इन वर्षों में कुल छह हजार नौ सौ सात दुर्घटनाऍ घटित हुई , जिनमे नौ हजार एक सौ इक्यासी गंभीर रूप से घायल हुए , जिनका दर्द मुझे आज भी सताता है।
इन्ही वर्षों के दौरान घटी दुर्घटना में एक हजार चार सौ तीस लोग , अकारण ही काल के गाल में समा गए। किसी के घर का चिराग बुझ गया , तो किसी के परिवार का मुखिया ही नहीं रहा। कई परिवारों के सपने समय से पहले ही बिखर गए।
वर्ष 2013 से सड़क दुर्घटनाओं में अचानक वृद्धि हुई। इस वर्ष कुल एक सौ छियालीस नागरिक सड़क दुर्घटना के कारण मौत के मुंह में समा गए ।
वर्ष 2013 की तुलना में वर्ष 2014 में यह संख्या बढ़कर दोगुनी हो गई। इस वर्ष सड़क दुर्घटना में मरने वालो की संख्या तीन सौ तेरह थी । जो सर्वाधिक थी। जिनके परिवार के सदस्य इस सड़क दुर्घटना के शिकार हुए , उनका दर्द उनके परिजनों के अलावा मुझे भी सताता है , क्योंकि मै खंडवा हूँ . मेरे अपने अंचल में रहने वाले कई लोग सड़क दुर्घटना के शिकार होकर , इस दुनिया से असमय ही विदा हो गए। कुछ भाग्यशाली ही थे जो इस दुर्घटना में घायल होने के बाद स्वस्थ हो गए । लेकिन कुछ ऐसे भी है , जो अब -तक स्वस्थ नहीं हो सके।
एस एन कालेज के व्याख्याता पी सेल्वराज उनमे से एक है , जिनके स्वस्थ होने की प्रार्थना उनके परिजन रोज करते है।
कभी खुशहाल जिंदगी बिताने वाले , तीन सदस्यों के इस परिवार को ना जाने किसकी नजर लग गई। वर्ष 2013 का दिसम्बर माह , इस परिवार की खुशियों पर ग्रहण लेकर आया। जब व्याख्याता पी सेल्वराज अपने घर जाने के लिए कालेज परिसर से बाहर निकले और सड़क दुर्घटना के शिकार हो गए। इस दुर्घटना के कारण वे छह माह के लिए कोमा में चले गए। छह माह कोमा में रहने के बाद , जब उन्हें होश आया , तब-तक वे अपनी सुध-बुध खो चुके थे। अब इनके परिजन , इन्हे घर से बाहर नहीं जाने देते , उन्हें डर है की कही ये पुनः किसी दुर्घटना के शिकार ना हो जाए।
व्याख्याता पी सेल्वराज की के साथ घटित हुई दुर्घटना बताने के पीछे मेरा मकसद सिर्फ इतना है की , मेरे अपने शहर का कोई बाशिंदा फिर इसी तरह किसी दुर्घटना का शिकार ना हो।
क्योंकि मै खंडवा हूँ , मेरे अंचल में रहने वाला कोई भी बाशिंदा किसी दुर्घटना का शिकार होता है , तो मै भी उनके परिजनों जितना ही दुखी होता हूँ ।
मेरे अपने अंचल में रहने वाले डाक्टर बीपी मिश्रा के एकलौते होनहार पुत्र , आनंद मिश्रा ने तेईस वर्ष की आयु में ही एमबीबीएस किया । आनंद मिश्रा का सपना था की वे भी अपने माता - पिता की तरह अपने शहरवासियों को चिकित्सा सेवा दे सके । लेकिन ऐसा हो ना सका। सात नवम्बर वर्ष दो हजार को हुई बाईक चलाते हुए सड़क दुर्घटना के शिकार हो गए। काश वे हेलमेट पहने होते , तो आज हमारे बीच होते।
दुर्घटना में अपनी जान गंवा देने वालो की फेहरिस्त बहुत लम्बी है। अभिषेक मसीह उम्र 32 वर्ष , अपने माता -पिता का इकलौता पुत्र , सरकारी नौकरी पाने की लालसा लिए , समय से पहले ही इस दुनिया से विदा हो गया। 19 -10 -2013 की तारीख इस युवक के लिए अंतिम तारीख साबित हुई। जब वह छेंगांव माखन फाटे पर एक आयशर वाहन को गलत साइड से ओव्हरटेक करने में अपने दो पहिया वाहन का संतुलन खो बैठा , और आयशर की चपेट में आ गया ।सरकारी नौकरी पाने की चाह रखने वाले इस युवक के भाग्य की विडंबना देखिये की उसकी मौत के तीन दिन बाद उसे सरकारी नौकरी के लिए बुलावा आया। अगर इस युवक ने गलत साइड से आयशर वाहन को ओव्हरटेक करने की गलती ना की होती , तो वह दुर्घटना का शिकार नहीं होता।
बाइस वर्षीय युवा , पंकज भट्ट के वाहन की तेज रफ़्तार उसकी जिंदगी की रफ़्तार से भी आगे निकल गई। ओव्हरब्रिज से गुजर रही स्कुल बस से आगे निकलने का जूनून सीधे मौत के मुंह में ले गया। इस घटना में बाईक सवार पंकज भट्ट और उसके साथी की मौत हो गई। काश , दोनों युवको ने रफ़्तार पर लगाम लगाई होती , हेलमेट पहना होता तो , तो शायद यह घटना जानलेवा ना होती।
सात वर्ष की मासूम रीनू बारेला , अपने मामा मामी के पास संजय नगर में रहती थी। जिसे उसके परिजनों ने घरेलु सामान लेने किराना दूकान भेज दिया। रीनू यह भी नहीं जानती थी की , भारी वाहनो की आवाजाही वाली सड़क को कैसे क्रास करना है। वह सड़क पार की किराना दूकान तक पहुँच ही नहीं सकी। क्योंकि बीच सड़क पर, रिवर्स हो रहे एक डम्पर ने उसे रौंद दिया। मेरे अपने शहरवासी यह क्यों नहीं समझते की , परिजनो को अपनी देखरेख में बच्चों को सड़क पार करानी चाहिए ।
आंगनवाड़ी कार्यकर्ता , शोभा सोनवणे , जिनके पति पहले ही चल बसे थे। अपने दोनों बच्चों की जिम्मेदारी बखूबी संभाल रही थी , की एक सड़क दुर्घटना में इस महिला की मौत हो गई। और उसके दोनों बच्चे फिर अनाथ हो गए। बच्चों के लालन-पालन की जिम्मेदारी नाना नानी के बूढ़े कंधों पर है। आंगनवाडी से घर वापस जाने की जल्दी में एक बाइक पर लिफ्ट लेकर आते समय यह महिला मानसिंग मिल तिराहे पर दुर्घटना की शिकार हो गई। बाइक सवार की गलती सिर्फ इतनी थी की उसने टर्न लेते समय , यातायात संकेत का उपयोग नहीं किया।
मेरे अपने अंचल की सड़को पर घटित हुई दुर्घटनाओं को बताने के पीछे मेरा मकसद सिर्फ इतना है की , मेरे अपने शहर का कोई बाशिंदा फिर इसी तरह किसी दुर्घटना का शिकार ना हो। किसी के घर का रोशन चिराग समय से पहले ना बुझे।
क्योंकि मै खंडवा हूँ , मेरे अंचल में रहने वाला कोई भी बाशिंदा किसी दुर्घटना का शिकार होता है , तो मै भी उनके परिजनों जितना ही दुखी होता हूँ । क्योंकि मै खंडवा हूँ ,
मै नहीं चाहता की कोई मेरा अपना किसी दुर्घटना का शिकार हो
मै नहीं चाहता की किसी के घर का चिराग रोशन होने से पहले ही बुझ जाए
मै नहीं चाहता की किसी के परिवार का मुखिया , असमय ही उस परिवार से विदा हो जाए। और उस परिवार के सपने बिखर जाए।
मै सिर्फ इतना ही चाहता हूँ की मेरे अपने शहर के नागरिक यातायात नियमो का पालन करते हुए अपना और अपनों का जीवन सुखद बनाये। क्योंकि मै खंडवा हूँ ,
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